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ग़ज़ल - मेरे यार तू
हो रहा है दिवाना मेरे यार तू ।
दिल्लगी का फ़साना मेरे यार तू ।।
गैर-ए-उल्फ़त मे' शिरकत करूँ क्यों भला ।
हाल-ए-दिल का ठिकाना मेरे यार तू ।।
फूल भी बाग़ भी चाँद भी रात भी ।
साथ में ये ज़माना मेरे यार तू ।।
अब हदों में बसर और मुमकिन नही ।
मंजिलों का तराना मेरे यार तू ।।
चल सितारों के' उसपार चलते तरुण ।
जिंदगी का बहाना मेरे यार तू ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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