Friday, 15 September 2017

ग़ज़ल 36 - मेरे यार तू

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ग़ज़ल - मेरे यार तू

हो रहा है दिवाना मेरे यार तू ।
दिल्लगी का फ़साना मेरे यार तू ।।

गैर-ए-उल्फ़त मे' शिरकत करूँ क्यों भला ।
हाल-ए-दिल का ठिकाना मेरे यार तू ।।

फूल भी बाग़ भी चाँद भी रात भी ।
साथ में ये ज़माना मेरे यार तू ।।

अब हदों में बसर और मुमकिन नही ।
मंजिलों का तराना मेरे यार तू ।।

चल सितारों के' उसपार चलते तरुण ।
जिंदगी का बहाना मेरे यार तू ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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