Thursday, 14 September 2017

ग़ज़ल 35 काश तुम होते

ग़ज़ल -काश तुम होते

ख़्वाबों से हक़ीक़त काश तुम होते ।
हाथों की लिखावट काश तुम होते ।।

जुल्फों की पनाहों मे जी' लेते हम ।
कदमो की भी' आहट काश तुम होते ।।

परछाई समेटे रात क्यों आती ।
बाँहों की ये' आदत काश तुम होते ।।

घर दीवार सबकुछ चाह छोड़ी है ।
इस दिल की बगावत काश तुम होते ।।

नफ़रत की इनायत से 'तरुण' बेबस ।
फिर मेरी मुहब्बत काश तुम होते ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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