ग़ज़ल -काश तुम होते
ख़्वाबों से हक़ीक़त काश तुम होते ।
हाथों की लिखावट काश तुम होते ।।
जुल्फों की पनाहों मे जी' लेते हम ।
कदमो की भी' आहट काश तुम होते ।।
परछाई समेटे रात क्यों आती ।
बाँहों की ये' आदत काश तुम होते ।।
घर दीवार सबकुछ चाह छोड़ी है ।
इस दिल की बगावत काश तुम होते ।।
नफ़रत की इनायत से 'तरुण' बेबस ।
फिर मेरी मुहब्बत काश तुम होते ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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