चौपाई पर एक प्रयास
काला कौवा बड़ा सयाना ।
चुग डाला है सारा दाना ।।
कोयल देखे और लजाये ।
कलयुग घर के भीतर आये ।।
पाई जोड़ी कौड़ी कौड़ी ।
तब जीवन की गाड़ी दौड़ी ।।
भ्रष्ट मजे से लूट रहा है ।
सीधे का बस रक्त बहा है ।।
बोलो हल्ला कौन मचाये ।
घर का भेदी लंका ढाये ।।
खाली गगरी खाली थाली ।
बिन लक्ष्मी अब कहाँ दिवाली ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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