122 122 122 122
छुपा क्या दिखा क्या समंदर ही जाने ।
लहर ने किया क्या ये' पत्थर ही जाने ।।
ये' बारिश की' बूँदे जवां हो गये हम ।
बिना बूँद क्या हाल बंजर ही जाने ।।
नही और कोई खलिश अब बची है ।
अदा बेवफाई की' रहबर ही जाने ।।
अमानत मिली या जमानत मिली है ।
निगाहों के' आंसू ये' अंदर ही जाने ।।
लहू को खबर खुद की' मिलती नही है ।
किया क़त्ल कैसे ये' खंजर ही जाने ।।
चलो बात छेड़े तरुण आज ऐसी ।
न उसको पता हो न अकबर ही जाने ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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