Monday 18 September 2017

ग़ज़ल 38 - वो ही जाने

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छुपा क्या दिखा क्या समंदर ही जाने ।
लहर ने किया क्या ये' पत्थर ही जाने ।।

ये' बारिश की' बूँदे जवां हो गये हम ।
बिना बूँद क्या हाल बंजर ही जाने ।।

नही और कोई खलिश अब बची है ।
अदा बेवफाई की' रहबर ही जाने ।।

अमानत मिली या जमानत मिली है ।
निगाहों के' आंसू ये' अंदर ही जाने ।।

लहू को खबर खुद की' मिलती नही है ।
किया क़त्ल कैसे ये' खंजर ही जाने ।।

चलो बात छेड़े तरुण आज ऐसी ।
न उसको पता हो न अकबर ही जाने ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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