चौपाई
१९.०९.२०१७
विषय - ईमानदारी
नेक राह पर चल रे पगले ।
भाग्य उदय हो जाये अगले ।।
तृष्णा लालच ये सब माया ।
छोड़ सको तो छोड़ो भाया ।।
कर्म साध्य तो धर्म सही है ।
नेकी बिन पुरुषार्थ नही है ।।
क्यों दूजे का हक है खाना ।
अपनी नीयत अपना दाना ।।
सर वो ऊँचा तान सकेगा ।
नेकी का जो पाठ पढ़ेगा ।।
मत भूलो सच ने जग जीता ।
प्रेमकुटिर मे जीवन बीता ।।
रामलला की हो संताने ।
कपटी रावण की क्यों माने ।।
जो मिला प्रभू से मान धरो ।
निश्छल होकर के काम करो ।।
चहुँओर खिले तब उजियाला ।
नेकभाव जब दीपक डाला ।।
सज्जन का है जग हितकारी ।
ईमान बिना क्या नर-नारी ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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