212 212 212 212
हाल-ए-दिल देखिये फिर वफ़ा कीजिये ।
यूँ न शर्मा के' आहें भरा कीजिये ।।
रोज ग़फ़लत मे' नजरें मिलाते रहे ।
अब निगाहों मे' आके रहा कीजिये ।।
रोग ये इसकदर जान पर आ गई ।
जब दवा ना मिले तो दुआ कीजिये ।।
आशिक़ी को उमर की जरूरत नही ।
हाथ मे हाथ लेकर चला कीजिये ।।
दिल्लगी की कदर कुछ करो भी 'तरुण' ।
उल्फ़ते जिंदगी को दफ़ा कीजिये ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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