Tuesday, 19 September 2017

ग़ज़ल 40 - वफ़ा कीजिये

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हाल-ए-दिल देखिये फिर वफ़ा कीजिये ।
यूँ न शर्मा के' आहें भरा कीजिये ।।

रोज ग़फ़लत मे' नजरें मिलाते रहे ।
अब निगाहों मे' आके रहा कीजिये ।।

रोग ये इसकदर जान पर आ गई ।
जब दवा ना मिले तो दुआ कीजिये ।।

आशिक़ी को उमर की जरूरत नही ।
हाथ मे हाथ लेकर चला कीजिये ।।

दिल्लगी की कदर कुछ करो भी 'तरुण' ।
उल्फ़ते जिंदगी को दफ़ा कीजिये ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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