ग़ज़ल - हो गया
212 212 212 212
इश्क में मै तिरे क्या से' क्या हो गया ।
जब से' देखा तुझे मै फ़िदा हो गया ।।
शाम भी रात भी नाम भी बात भी ।
कुछ न मेरा रहा सब तिरा हो गया ।।
मै पलटता रहूँ सर्द मे करवटें ।
हाल मेरा सनम वक़्त सा हो गया ।।
रोशिनी दूर जाओ कि आना नही ।
नूर मुझपर किसी चाँद का हो गया ।।
कागज़ी है नही हर्फ़ की रागिनी ।
वो तरुण हाल-ए-दिल की सदा हो गया ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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