Tuesday, 12 September 2017

ग़ज़ल 34 - हो गया

ग़ज़ल - हो गया

212 212 212 212

इश्क में मै तिरे क्या से' क्या हो गया ।
जब से' देखा तुझे मै फ़िदा हो गया ।।

शाम भी रात भी नाम भी बात भी ।
कुछ न मेरा रहा सब तिरा हो गया ।।

मै पलटता रहूँ सर्द मे करवटें ।
हाल मेरा सनम वक़्त सा हो गया ।।

रोशिनी दूर जाओ कि आना नही ।
नूर मुझपर किसी चाँद का हो गया ।।

कागज़ी है नही हर्फ़ की रागिनी ।
वो तरुण हाल-ए-दिल की सदा हो गया ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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