Saturday 10 June 2017

विश्वास

*शीर्षक - विश्वास*

वो लड़ सकती है अपनी लड़ाई खुद
उसे नही कुछ ख़ास चाहिए
ज़माने का बस थोड़ा सा विश्वास चाहिए ।

जो मौलाना लगाते हैं फतवे सरेआम
उनकी सीरत का थोड़ा कयास चाहिए
ज़माने का बस थोड़ा विश्वास चाहिए ।

चाहे *'सना'* हो *'सानिया'* या *'हसीं जहां'*
उनके कपड़ों पर नही कोई बकवास चाहिए
ज़माने का बस थोड़ा सा विश्वास चाहिए ।

मज़हब की बातें करते हो
अगर तीन तलाक़ मर्दों का हक़ है
तो यकीनन तुम्हारी अस्ल पर
नस्ल पर और सोच पर मुझे शक है
तुम होते कौन हो आख़िर
हमें जीना सिखाने वाले
वो ख़ुदा दिल में है मेरे
और मेरी ख़ुदाई है उसके हवाले
हमारे दरम्यां आने वाले
ओ मज़हब के हवलदार
नही चाहिए तुम्हारी रायशुमारी
नही चाहिए तुम्हारी जिम्मेदारी

इक्कीसवीं सदी की उम्मीद हैं हम
हमे हर-ओर प्यार और विकास चाहिए
ज़माने का बस थोड़ा विश्वास चाहिए ।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

No comments:

Post a Comment