ग़ज़ल - मुस्कुराया करो
बहर - 122 122 122 12
हमें पास आकर बताया करो
नही इसतरह से छुपाया करो
फरेबी नही हैं फिदरत हमारी
ज़रा हाल-ए-दिल दिखाया करो
न समझे ज़माना दिलों की फ़िज़ा
युं आँसू न खुलके बहाया करो
नज़र ही नज़र मे मुनासिब मुहब्बत
नज़र बेधड़क तुम मिलाया करो
तरुण नाम है रहगुजर हूँ तिरा
चलो साथ मे मुस्कुराया करो
*कविराज तरुण सक्षम*
साहित्य संगम संस्थान
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