ग़ज़ल - किसान
बहर - 122 122 122 12
सियासत मुबारक कफ़न कर रहा ।
किसानों को' यूँही दफ़न कर रहा ।।
मुखौटा लगा जो मुखालत करे ।
घरों को जला वो हवन कर रहा ।।
दुपहरी मे' निकला फसल नापने ।
उपज का मुनासिब जतन कर रहा ।।
मिले मूल्य थोड़ा खटे रात दिन ।
दलाली मे' हक़ वो गबन कर रहा ।।
उसे क्यों लपेटो हवस वोट मे ।
घुट घुट कर आधा बदन कर रहा ।।
खुदा से रहम की गुजारिश करूँ ।
सफेदी पहन वो हनन कर रहा ।।
तरुण हाथ जोड़े खड़ा सामने ।
बड़े भाव से अब नमन कर रहा ।।
कविराज तरुण सक्षम
साहित्य संगम संस्थान
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