ग़ज़ल प्रतियोगिता हेतु
बहर - 212 212 212 2
रदीफ़ - आया
काफ़िया - आम
आज फिर गैर मे नाम आया ।
मै कहाँ सच तिरे काम आया ।।
रात असफार में चाँद नम है ।
मै सुबह निकला' तो शाम आया ।।
कौन कहता खलिश आख़िरी ये ।
मौत का ख़त सरेआम आया ।।
वो दगाबाज़ थे फिर भी' खुश हैं ।
गम में' डूबा मुझे जाम आया ।।
मै ख़रीदा करूँ ख़्वाब बेशक ।
खुद से भी जबर दाम आया ।।
बेवफा ख़त तिरा भी अजब है ।
खार गुल साथ पैगाम आया ।।
चल 'तरुण' छोड़ दे अब मुहब्बत ।
मन मुताबिक न अंजाम आया ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
*साहित्य संगम संस्थान*
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