Monday 5 June 2017

ग़ज़ल 1-जिंदगानी में

*जिंदगानी मे*
(ग़ज़ल - मुफाईलुन x4)

सनम जो रेख खींची थी ज़माने ने जवानी मे
उसे तुम पार कर लो तो मजा आये कहानी मे

कभी चाहत का' दामन थाम कर घर से कदम रखना
अगर दिल आशिकाना हो लगे है आग पानी मे

ज़रा इस बेदिली को बेदखल कर दो नज़ाक़त से
नज़र आये हमें भी कुछ छुपा जो आबदानी मे

कलम चोटिल बड़ी मुश्किल हया की चादरें भी हैं
उमर बीती चली है आज फिरसे पासबानी मे

*तरुण* असरार है इतना अलम से खुशनसीबी में
अकीदत सी हलावत हो कि जैसे जिंदगानी मे

*कविराज तरुण सक्षम*

अकीदत - भरोसा
हलावत - मिठास
अलम - दुःख
असरार - भेद
पासबानी - देखरेख करना
आबदानी - पानी का पात्र (आँखें)

No comments:

Post a Comment