*ग़ज़ल - आतंक*
बहर - 122 122 122 12
शहर लाल सारा का' सारा हुआ ।
चमन से अमन बे-सहारा हुआ ।।
करे खून इंसानियत बे-वज़ह ।
मुजाहिद मुहब्बत से' हारा हुआ ।।
खुदा नेक रस्ता तू' इनको बता ।
जिहादी अकल से ये' मारा हुआ ।।
जहन पाक हो तो मिलेगा ख़ुदा ।
नही नाम से ही गुजारा हुआ ।।
न रोके रुके हैं 'तरुण' मुश्किलें ।
लहू उस फ़रेबी का खारा हुआ ।।
*कविराज तरुण सक्षम*
*साहित्य संगम संस्थान*
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