Friday 30 June 2017

ग़ज़ल - हुआ सा है

1212  1122 1212 22
आ ,  सा है

मिरा खुदा मुझसे ही ख़फ़ा ख़फ़ा सा है ।
रवां अकीदत सब कुछ उड़ा उड़ा सा है ।।

असास का इक पत्थर हिला के' जाना ये ।
वजूद-ए-हम वहशत अलम खला सा है ।।

मलाल ये है' कि उसने मुझे नही समझा ।
मलाल ये भी' कि अब वो जुदा जुदा सा है ।।

ख़ुलूस था कद जिसका किताब के जैसे ।
हरेक हर्फ़ उसी का धुआँ धुआँ सा है ।।

तरुण ये' चाहत की सरहदें छू' के देखा ।
मिज़ाज-ए-उलफ़त अब फ़ना फ़ना सा है ।।

*कविराज तरुण सक्षम*

ख़फ़ा - नाराज
रवां - जिंदगी
अकीदत - भरोसा
असास - नींव
वहशत - पागलपन
अलम - दुःख
खला - खाली
मलाल - अफ़सोस
ख़ुलूस - स्पष्ट
हर्फ़ - अक्षर
उलफ़त - प्यार
फ़ना - अंत

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