Tuesday 20 June 2017

ग़ज़ल - नहीं है

212 212 212 2
एक प्रयास

तीर दिल पे ये' खाना नही है ।
कुछ हमे आजमाना नही है ।।

बेरुखी दिल्लगी का असर है ।
और रोना रुलाना नही है ।।

डूब जाते मुहब्बत मे अक्सर ।
तैरने का ठिकाना नही है ।।

खार गुल से हुआ जब मुख़ातिब ।
जान पाया ज़माना नही है ।।

रहगुज़र दूर कर दो नज़र ये ।
हाथ कुछ आज आना नही है ।।

*कविराज तरुण सक्षम*

No comments:

Post a Comment