Sunday, 14 January 2018

ग़ज़ल 71 देखिये

2122 2122 212

प्यार के किस्से सजाकर देखिये ।
गैर को अपना बनाकर देखिये ।।

बात इतनी सी गुजारिश मै करूँ ।
दिल मे' इक दीपक जलाकर देखिये ।।

वो ख़फ़ा हो जाये तो फिर गम नही ।
सामने से मुस्कुराकर देखिये ।।

कुछ भरोसा भाग्य पर होने लगे ।
हाथ दुश्मन से मिलाकर देखिये ।।

ताज कोई भी बना लेता मगर ।
पत्थरों को खुद उठाकर देखिये ।।

शायरी से बात भी हो जायेगी ।
लफ्ज़ से मोती चुराकर देखिये ।।

दाम इज्जत का नही लग पायेगा ।
हो सके तो अब कमाकर देखिये ।।

चल तरुण अब दर्द पे लिखना भी' क्या ।
है दवा तो फिर खिलाकर देखिये ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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