Wednesday, 31 January 2018

ग़ज़ल 80 नही सकते

2122 1212 22

हम ये वादा निभा नही सकते ।
नींद को भी बुला नही सकते ।।

मर्ज मालूम है दवा मुश्किल ।
चाह कर भी खिला नही सकते ।।

शाख से पत्ते यूँ गिरे तन्हा ।
फूल इसमें उगा नही सकते ।।

छोड़ आये हैं बात बातों में ।
बोझ इतना उठा नही सकते ।।

हो *तरुण* प्यार गर लकीरों में ।
करके कोशिश मिटा नही सकते ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment