Thursday, 18 January 2018

ग़ज़ल 74 प्यार कर

ग़ज़ल
२१२२ २१२२ २१२

दो मिरी नज़रें तू' दो से चार कर ।
ख़्वाब के ही दरमियां अब प्यार कर ।।

सींक जैसी जिंदगी बारीक है ।
पर्वतों सा तू मिरा आधार कर ।।

मुश्किलों से मामला तुझतक गया ।
कार्यवाही कुछ भली इसबार कर ।।

रात की काली सियाही तेज है ।
आँच से ही रौशिनी साकार कर ।।

मै नही कहता मुहब्बत झूठ है ।
सच मगर इसको कभी तो यार कर ।।

चादरों को भी पसीना आ गया ।
चाहतों की देर तक बौछार कर ।।

आप के आगोश में हैं हसरतें ।
इस *तरुण* को खार से गुलज़ार कर ।।

*कविराज तरुण 'सक्षम'*

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