Wednesday, 31 January 2018

ग़ज़ल 81 कर न देना

221 2122 221 2122

तुम अपनी निगाहों से बेजार कर न देना ।
है प्यार बेतहाशा बेकार कर न देना ।।

इक बारहां ही होता इकबार दिल धड़कता ।
तुम दल बदलने वाली सरकार कर न देना ।।

चढ़कर उतर न पाये ये मर्ज जानलेवा ।
यूँ खामखाँ हमें तुम बीमार कर न देना ।।

रश्में निभा सको तो ये हाथ फिर बढ़ाना ।
यूँ बावजां ही मुझको शमसार कर न देना ।।

कुछ सब्सिडी मिलेगी मेरी मुहब्बतों को ।
डीलिंक अपने दिल से आधार कर न देना ।।

चल साथ आज मेरे ये दिल की इल्तज़ा है ।
अपने तरुण को रुसवा इसबार कर न देना ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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