2122 2122 212
आँख से सुरमा चुराकर चल दिया ।
रात फिर बातें बनाकर चल दिया ।।
मै तड़पती ही रही तब याद मे ।
बेरिया जब मुस्कुराकर चल दिया ।।
नींद आ जाये खुदा की खैर हो ।
ख़्वाब मे आके जगाकर चल दिया ।।
प्यार कम है ये नही मै मानती ।
यार मेरा घर बसाकर चल दिया ।।
आहटें दिल की जुबानी आ रहीं ।
धड़कनों मे गुनगुनाकर चल दिया ।।
लौट कर आये शिकायत फिर करूँ ।
हाथ क्यों ऐसे छुड़ाकर चल दिया ।।
कैद कर लूँगी मै' बाहों में तुझे ।
अब 'तरुण' जो पास आकर चल दिया ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
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