Monday, 15 January 2018

ग़ज़ल 73 चल दिया

2122 2122 212

आँख से सुरमा चुराकर चल दिया ।
रात फिर बातें बनाकर चल दिया ।।

मै तड़पती ही रही तब याद मे ।
बेरिया जब मुस्कुराकर चल दिया ।।

नींद आ जाये खुदा की खैर हो ।
ख़्वाब मे आके जगाकर चल दिया ।।

प्यार कम है ये नही मै मानती ।
यार मेरा घर बसाकर चल दिया ।।

आहटें दिल की जुबानी आ रहीं ।
धड़कनों मे गुनगुनाकर चल दिया ।।

लौट कर आये शिकायत फिर करूँ ।
हाथ क्यों ऐसे छुड़ाकर चल दिया ।।

कैद कर लूँगी मै' बाहों में तुझे ।
अब 'तरुण' जो पास आकर चल दिया ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

No comments:

Post a Comment