221 2121 1221 212
कुछ भी तुम्हारे इश्क़ ने करने नही दिया ।
इस बेखुदी ने मौज से रहने नही दिया ।।
बेचा तुम्ही ने प्यार को बाज़ार में कहीं ।
बिकने दिलों को रूह को हमने नही दिया ।।
जो कुछ मिला है आपसे वो काम का सही ।
हों नफ़रतें या प्यार हो थमने नही दिया ।।
ये अश्क़ मेरे आँख की गाढ़ी कमाई हैं ।
इन मोतियों को खामखाँ बहने नही दिया ।।
बिखरा है बे-हिस-आब वो अपने गुरूर में ।
जब पास था हमारे बिखरने नही दिया ।।
बहतर *तरुण* ये हसरतें जलती फरेब से ।
थी आग मेरे सामने जलने नही दिया ।।
कविराज तरुण 'सक्षम'
No comments:
Post a Comment