Tuesday, 30 January 2018

ग़ज़ल 79 नही दिया

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कुछ भी तुम्हारे इश्क़ ने करने नही दिया ।
इस बेखुदी ने मौज से रहने नही दिया ।।

बेचा तुम्ही ने प्यार को बाज़ार में कहीं ।
बिकने दिलों को रूह को हमने नही दिया ।।

जो कुछ मिला है आपसे वो काम का सही ।
हों नफ़रतें या प्यार हो थमने नही दिया ।।

ये अश्क़ मेरे आँख की गाढ़ी कमाई हैं ।
इन मोतियों को खामखाँ बहने नही दिया ।।

बिखरा है बे-हिस-आब वो अपने गुरूर में ।
जब पास था हमारे बिखरने नही दिया ।।

बहतर *तरुण* ये हसरतें जलती फरेब से ।
थी आग मेरे सामने जलने नही दिया ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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