विषय - बालकथा
ढील दो ढील दो ढील दो... अरे कैसे पकड़े हो ? छोटा सा काम भी नही आता तुम्हे ... बेवक़ूफ़ ।
भईया बाकी सब तो ठीक है पर ये बेवक़ूफ़ न बोलिये ।
बड़ी जुबान चलने लगी है तेरी । आज पतंग तेरी वजह से कटी तो मैदान के सौ चक्कर लगवाऊंगा ।
... और पतंग कट गई ।
बुलेट की रफ़्तार से चरखी छोड़ मै घर को भागा और पीछे पीछे मेरे बड़े भाई साहब । मुझे पकड़ना मुश्किल ही नही नामुमकिन है और जब पीछे यमदूत पड़ा हो तो भागने में अलग ही मजा है ।
रानू ! रुक जा वर्ना इतना दौड़ा रहा है मुझे । बेटा डबल पिटाई होगी ।
पहले पकड़ो तो फिर मारना । - मैंने बोला और सीधा दीवार फांदके घर के अंदर । पहली मंजिल पर तीसरा कमरा और वहाँ यमदूत को भी झाड़ लगाने वाली मेरी प्यारी माँ ।
उनके पीछे जाकर छुप गया ।
क्या हुआ बेटा ! आज फिर पतंग कट गई और इल्जाम मेरे दुलारे पर आया है ।
हाँ माँ ! भईया जाने कब अपनी गलती का ठीकरा मुझपे फोड़ना छोड़ेंगे ।
ठन ठन ठन -- टिंग टोंग । - बेल की आवाज मेरी धड़कन की रफ़्तार बढ़ा रही थी ।
रुक मै गेट खोलती हूँ - माँ तो माँ है , उन्हें मेरे दिल की धड़कन या रक्तचाप नापने के लिए किसी मशीन की जरुरत नहीं । बुखार तो बिना सर छुये या नब्ज़ देखे बता देती है कि मुझे हुआ है या नही । फिर ये तो रोज का मसला है पर आज भईया अलग ही मूड में हैं । पिछली बार माँ नही थी तब तीन बेल्ट पड़ी थी मुझे और वो बात किसी को बताई भी नही थी । पर आज कोई डर नही है ।
बेल है ये , तुम्हारी मोटर साइकिल का हॉर्न नही है । - बड़बड़ाते हुए माँ ने गेट खोला ।
रानू कहाँ है माँ ? उसने आज मुझसे जुबान लड़ाई है । आज उसे नही छोडूंगा । - भईया चिल्लाते हुए बोले ।
चल बैठ पहले यहाँ और बता ऐसा क्या कह दिया तेरे छोटे भाई ने जो इतना क्रोधित है । - माँ ने कहा
उसने मुझसे जुबान लड़ाई जब मैंने उसे बेवक़ूफ़ कहा और पतंग कटने पर भाग आया यहाँ । मैंने बोला भी कि भागेगा तो बहुत पिटाई होगी तो कहने लगा पहले पकड़ो तो । - एक साँस में भईया ने सब बोल दिया ।
तो इसमें क्या बुराई है रे
माँ उसे फर्जी न बचाओ । आज उसकी गलती है । सजा तो मिलेगी ।
गलती उसकी नही तेरी है । तूने उसे बेवक़ूफ़ बोला , जो वो है नही । क्योंकि अगर होता तो भाग के मेरे पास न आता । और रही बात पकड़ने की तो तुम उसे कभी पकड़ तो पाते नही फिर क्यों पीछा करते हो । मुझे तो लग रहा तुम बेवक़ूफ़ हो । - और माँ हँसने लगी ।
भईया एकदम चुप और तबतक मै भी माँ की हँसी सुनकर वहां आ गया ।
फिर भईया ने जो बोला वो आज भी मेरी आँखे नम कर देता है - माँ मै पीछे इसलिए भागा क्योंकि ये अपनी चप्पल छोड़कर वहाँ से भागा था और मुझे चिंता थी कि कहीं कोई कंकड़ या कांटा न चुभ जाए उसे । भईया के हाथ में अभी भी मेरी चप्पल थी ।
माँ ने मेरी तरफ देखा और उसदिन सच में मेरे पैर में कहीं से कट गया था और तलवे में से खून भी निकल रहा था ।
माँ और मेरी आँखों में आँसू आ गए ।
और भईया से मैंने सॉरी बोला और गले से लिपट गया ।
- कविराज तरुण 'सक्षम'
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