विषय - चंदन चंदन
चंदन चंदन गूँज उठी है , कासगंज की वादी ये ।
भीड़ तिरंगा लेके निकली , गोली क्यों चलवा दी है ।।
क्या धर्म के रक्षक अब कोई , अवाज नही उठायेंगे ।
गैंग अवॉर्ड वापसी वाले , यहाँ मौन रह जायेंगे ।।
अब असहिष्णु भारत का नारा , हमको कौन सुनायेगा ।
पत्रकारिता इस मुद्दे पे , बोलो कौन करायेगा ।।
जो हमसब चुपचाप रहेंगे , वर्ग विशेष इतरायेंगे ।
पाकिस्तानी झंडे को वो , जगह जगह लहरायेंगे ।।
तब अखंड भारत का नारा , खंड खंड हो जायेगा ।
जयचंदो की खाल पहनके , दुश्मन धूम मचायेगा ।।
घर घर टूटेंगे फूटेंगे , त्राहि त्राहि मच जायेगी ।
हिन्दू मुस्लिम भाई भाई , बस बातें रह जायेगी ।।
तम का नंगा नाच दिखेगा , भारत माँ के सीने पे ।
जब पाबंदी लग जायेगी , वंदेमातरम् कहने पे ।।
ओर छोर अहसासों का भी , आग लपट में जलता है ।
जयहिंद लबों पर लेकर के , देखे कौन निकलता है ।।
देखो इन गद्दारों को मै , आँख दिखाने आया हूँ ।
एक एक को मै चुन चुनके , आज मिटाने आया हूँ ।।
जो भरा नही है भावों से , वो बिलकुल खाली खाली है ।
मौन समर्थन देने वालों , ये कैसी मक्कारी है ।।
यही हाल जो रहा देश का , कोय नही चंगा होगा ।
गली गली में चौराहे पे , भीषड़ फिर दंगा होगा ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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