2122 1212 22
आजकल भूख भी नही लगती ।
और कुछ चीज भी नही फबती ।।
रहती पलकें खुली खुली हरदम ।
रातभर नींद भी नही जगती ।।
रोग ऐसा लगा जवानी मे ।
जान जाती मगर नही भगती ।।
चाँद आगोश में तसल्ली है ।
चाँदनी बारबां नही सजती ।।
जिस दुपट्टे को थाम के रोया ।
धूप में भी नमी नही हटती ।।
हाल बेहाल दिल तकल्लुफ मे ।
ये कमी भर के भी नही भरती ।।
क्यों *तरुण* खामखाँ पुकारो तुम ।
वो हसीं अब यहाँ नही रहती ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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