ताटंक छंद-देशहित
16,14 मात्राएँ प्रति पंक्ति, अंत मे 3 गुरु , दो- दो पंक्ति संतुकान्त
विषय - देशहित
सत्ता के अब रखवालों ने
ऐसी लपट लगा दी है ।
देख देख हरकत ओछी को
शर्मिंदा अब गांधी है ।।
धर्म जाति पर लड़ते देखा
हमने कई दलालों को ।
ऊँच नीच का लेखा जोखा
सतरंगी इन चालों को ।।
खून आज भी नेताजी का
धधक रहा है काया में ।
लौहपुरुष भी ये ही सोचें
कैसा दिन ये आया है ।।
लटके हँसते हँसते देखो
राज-भगत-सुख सूली पे ।
वीर शौर्य की गाथा थे वो
पुरुष नही मामूली थे ।।
आज देख हालत बेचारी
देशभक्त भी रोया है ।
जाने नफरत का पौधा क्यों
राजनीति ने बोया है ।।
एकसूत्र में बांध ले कोई
मै आवाज लगाता हूँ ।
धरती अमर शहीदों की
फिरसे आज बताता हूँ ।।
बेमतलब की बातें छोड़ो
याद करो कुर्बानी को ।
काम देश के जो ना आये
है धिक्कार जवानी को ।।
केसरिया पट्टी को बाँधो
माथे तिलक लगाना है ।
राजनीति से आगे आके
हमको देश बचाना है ।।
तरुण कुमार सिंह
9451348935
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