2122 2122 212
प्यार की गहराइयाँ अच्छी लगी ।
धूप में परछाइयां अच्छी लगी ।।
फुर्सतों से मिल रहे जब रात दिन ।
शाम की अंगड़ाइयाँ अच्छी लगी ।।
शब्द में जब मै तुम्हे लिखने लगा ।
अर्थ की रानाइयाँ अच्छी लगी ।।
चाँदिनी जब आ गिरी है फ़र्श पर ।
चाँद की तन्हाइयाँ अच्छी लगी ।।
मुफ़लिसी की अब मुहब्बत देखकर ।
दिल की' ये महँगाइयाँ अच्छी लगी ।।
बारिशों की बूँद छतरी पर गिरी ।
मौसमी शहनाइयाँ अच्छी लगी ।।
बादलों ने उड़के' जो पूछा पता ।
तो तरुण पुरवाइयाँ अच्छी लगी ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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