Sunday, 21 January 2018

ग़ज़ल 77 - आवारगी अच्छी नही

2122 2122 212

इश्क़ में आवारगी चलती नही ।
बैठकर कोई शमा जलती नही ।।

हासिये पर जिंदगी के दांव हैं ।
ख़्वाब मे सच्चाइयां पलती नही ।।

जब मुहब्बत खोज ले तेरा पता ।
खिड़कियों से आड़ तब मिलती नही ।।

दो इजाजत वक़्त को कुछ रोज की ।
बेवजा ये जिंदगी छलती नही ।।

जो जवां हैं आदतन दिल से *तरुण* ।
उम्र उनकी जीते' जी ढलती नही ।।

कविराज तरुण 'सक्षम'

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