*बाल कविता*
मेरे घर के अंदर मेरी , बेटी का भी इक संसार है ।
शिनचैन नोबिता डोरेमोन , सबसे उसको प्यार है ।।
अपनी डॉल को लेकर सोती , परवाह उसकी करती है ।
बचपन से ही अलख प्रेम की , देखो कैसे पलती है ।।
खेले खेल खिलौने हरदम , बोले मिशरी सी बोली ।
क्रिसमस ईद दीवाली लोहड़ी , उसके खुशियों की झोली ।।
मन में कोई विकार नही , हर जीव बराबर ही जाने ।
कोरे मन का सुन्दर दर्पण , एकभाव से सब माने ।।
कुछ भी देखे रूप नया , तो प्रश्न सहज ही आते हैं ।
मम्मी! रोज सवेरे उठकर , पापा ऑफिस क्यों जाते हैं।।
देख उसे मै कभी कभी , बचपन में खो जाता हूँ ।
पर खुद को मै पहले से , गिरा हुआ ही पाता हूँ ।।
धर्म जाति नफ़रत लालच , क्या क्या नही बटोरा है ।
मानवमूल्य का धीरे धीरे , खाली पड़ा कटोरा है ।।
काश ! मै बेटी जैसा ही , निःस्वार्थ प्रेम के भाव जगाऊँ ।
यही सोच आती रहती है , जब मै घर मे वापस आऊँ ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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