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आँखों के' दुरस्तों से गिरता हुआ' पानी है ।
कोई तो' ये' समझाये कैसी ये' कहानी है ।।
हम जोड़ के' रिश्तों का मुँह मोड़ नही पाये ।
वो छोड़ के' खुश हैं तो बेकार जवानी है ।।
जो घर था' मुहब्बत का फूलों से' सजा मेरे ।
काँटो सी' हुई अब ये दीवार गिरानी है ।।
ऐसा न हो रो दूँ मै पर अश्क़ तेरे निकलें ।
गर प्यार था' लफ्ज़ो मे कीमत तो' चुकानी है ।।
जो ख़्वाब चला मेरा रातों के' अँधेरों मे ।
चौखट पे' तिरी उसको अब रात बितानी है ।।
ताबूत मे' रख लेना ख़त यार मिरे बेशक ।
जो शब्द पुकारेंगे आवाज़ तो' आनी है ।।
दिलदार *तरुण* कोई हर बार नही बनता ।
इन वक़्त की' शाखों से तकदीर चुरानी है ।।
*कविराज तरुण 'सक्षम'*
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